बढ़ती महंगाई के बीच क्या भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने रेपो रेट बढ़ाए जाने के फैसले में देरी की है?

ऐसे तमाम आरोपों को खारिज करते हुए आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा है कि महंगाई को बर्दाश्त करना भी जरूरी था।

उन्होंने कहा कि केंद्रीय बैंक अगर और पहले मुद्रास्फीति प्रबंधन पर ध्यान देने में लग जाता तो इसके परिणाम अर्थव्यवस्था के लिए विनाशकारी हो सकते थे।

एक कार्यक्रम में आरबीआई गवर्नर ने कहा, ‘‘उच्च मुद्रास्फीति को बर्दाश्त करना जरूरी था, हम अपने फैसले पर कायम हैं।’’

उन्होंने कहा कि केंद्रीय बैंक आर्थिक परिवर्तनों की जरूरतों को देखते हुए कदम उठा रहा था।

दास ने कहा कि आरबीआई के नियमों में यह स्पष्ट कहा गया है कि मुद्रास्फीति का प्रबंधन वृद्धि संबंधी हालात को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि वैश्विक महामारी के मद्देनजर आरबीआई ने वृद्धि की ओर ध्यान दिया और सुगम नकदी परिस्थितियां बनने दीं।

इसके बावजूद 2022-21 में अर्थव्यवस्था 6.6 फीसदी संकुचित हो गई थी।

उन्होंने कहा कि केंद्रीय बैंक ने यदि अपना रुख पहले बदल लिया होता तो 2021-22 में वृद्धि पर इसका असर पड़ सकता था।

आरबीआई गवर्नर ने साफ किया कि मुद्रास्फीति से निपटने के लिए आरबीआई तीन या चार महीने पहले ध्यान नहीं दे सकता था।

उन्होंने कहा कि मार्च में जब आरबीआई को ऐसा लगा कि आर्थिक गतिविधियां वैश्विक महामारी से पहले के स्तर से आगे निकल गई हैं

तब उसने मुद्रास्फीति को काबू करने की दिशा में काम करने का निर्णय लिया। उन्होंने कहा कि केंद्रीय बैंक दरों में तत्काल बड़ी वृद्धि नहीं कर सकता था।

आरबीआई गवर्नर ने कहा, फरवरी में अनुमान था कि 2022-23 में मुद्रास्फीति 4.5 फीसदी रह सकती है